भूमिका
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख और पवित्र पर्व है जो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। यह पर्व सूर्य की उपासना, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और आत्मसंयम का प्रतीक है। इस दिन भक्त सूर्य देव को जल अर्घ्य अर्पित कर परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु की कामना करते हैं।
छठ पूजा 2025 विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में भव्यता से मनाई जाएगी।
छठ पूजा 2025 की तिथि व समय
छठ पूजा चार दिनों तक मनाई जाती है — नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक।
- नहाय-खाय (पहला दिन): शनिवार, 25 अक्टूबर 2025
- खरना (दूसरा दिन): रविवार, 26 अक्टूबर 2025
- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): सोमवार, 27 अक्टूबर 2025
- उषा अर्घ्य / पारण (चौथा दिन): मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025
षष्ठी तिथि: 27 अक्टूबर प्रातः 06:04 बजे से 28 अक्टूबर प्रातः 07:59 बजे तक (दिल्ली समय अनुसार)
इतिहास और पौराणिक कथा
छठ पूजा का उल्लेख वैदिक काल से मिलता है, जब सूर्य की आराधना जीवन के स्रोत के रूप में की जाती थी।
किंवदंतियों के अनुसार —
- रामायण में, माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा की थी।
- महाभारत में, द्रौपदी और पांडवों ने भी छठ व्रत रखकर कठिनाइयों से मुक्ति पाई थी।
- राजा प्रियव्रत की कथा भी प्रसिद्ध है, जिन्होंने संतान प्राप्ति के लिए छठी मैया की आराधना की थी।
छठ पूजा का महत्व (Significance)
- सूर्य उपासना का पर्व: यह पर्व सूर्य देव को समर्पित है जो जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के प्रतीक हैं।
- शुद्धता और आत्म-संयम: छठ व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है, जिसमें उपासक जल तक ग्रहण नहीं करते और कठोर नियमों का पालन करते हैं।
- प्रकृति के प्रति आभार: यह पर्व हमें बताता है कि प्रकृति का आदर और संरक्षण ही जीवन की वास्तविक पूजा है।
- परिवार और संतान-कल्याण: भक्त सूर्य देव और छठी मैया से परिवार की उन्नति और संतान की सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं।
चार दिनों की पूजा विधि (Puja Vidhi)
पहला दिन – नहाय-खाय:
इस दिन भक्त स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं। शरीर और मन की शुद्धि के साथ व्रत का संकल्प लिया जाता है।
दूसरा दिन – खरना:
पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़-की-खीर, पूड़ी और केला का प्रसाद बनाकर अर्पित किया जाता है। इसके बाद व्रती अगला दिन तक उपवास रखता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:
संध्या समय महिलाएं व्रती पुरुष नदी या तालाब के घाट पर खड़ी होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस अवसर पर छठ गीत और लोक संगीत की गूंज वातावरण को भक्ति-मय बना देती है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य / पारण:
सुबह-सवेरे उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है और प्रसाद घर-घर में बांटा जाता है।
छठ पूजा का सांस्कृतिक महत्व और उत्सव
- यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
- गंगा, गंडक, कोसी, बागमती और अन्य नदियों के घाट सजाए जाते हैं।
- छठ गीत जैसे “केलवा के पात पर उगले सूरज देव”, “छठी मईया आइलें अंगना” माहौल को पवित्र बना देते हैं।
- ठेकुआ, गुड़-की-खीर, और फलों का प्रसाद छठ पूजा की पहचान हैं।
- यह पर्व पर्यावरण-अनुकूल (Eco-Friendly) माना जाता है क्योंकि इसमें किसी मूर्ति-विसर्जन या प्रदूषण का स्थान नहीं है।
आधुनिक समय में छठ पूजा का संदेश
छठ पूजा का संदेश आधुनिक जीवन में भी अत्यंत प्रासंगिक है —
- यह प्रकृति संरक्षण, पर्यावरण संतुलन और कृतज्ञता की भावना को प्रोत्साहित करता है।
- आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है, छठ पूजा हमें याद दिलाती है कि सूर्य और जल ही हमारे जीवन का आधार हैं।
- यह पर्व सामूहिकता, एकता और सामाजिक सद्भाव को भी बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है। यह हमें सिखाती है कि आत्म-अनुशासन, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति सम्मान से ही सच्ची समृद्धि संभव है।
छठी मैया और सूर्य देव के आशीर्वाद से सभी के जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहे।
“छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ!”
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