मकर संक्रांति की तारीख 15 जनवरी 2024 है। मकर संक्रांति, जिसे माघी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हर साल, मकर संक्रांति 14 जनवरी या 15 जनवरी को पड़ती है। मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है।
मकर संक्रांति 2024 महा पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 7:14 बजे से सुबह 8:59 बजे तक है और पुण्य काल सुबह 7:14 बजे से शाम 5:45 बजे तक है।
मकर संक्रांति के शुभ दिन पर, लोग पवित्र नदियों विशेषकर गोदावरी, गंगा, यमुना और कृष्णा में पवित्र डुबकी लगाते हैं जो की बहुत ही शुभ माना जाता है.
ऐसा माना जाता है कि पवित्र स्नान करने के बाद आपके पिछले सभी पाप मिट जाते हैं। लोग अपनी समृद्धि और सफलता के लिए भी सूर्य से प्रार्थना करते हैं।
मकर संक्रांति 2024 तिथि 15th January 2024, Monday
मकर संक्रांति पुण्य काल 7:14 AM to 5:45 PM
मकर संक्रांति पुण्य काल अवधि 10 Hours and 31 Minutes
मकर संक्रांति महा पुण्य काल 7:14 AM to 8:59 AM
मकर संक्रांति महा पुण्य काल अवधि 1 Hour and 45 Minutes
Sankranti is basically a public holiday in India and lasts from 2 to 4 days in most states. Few other festivals that are celebrated along with Makar Sankranti are as follows:
People from Hindu religion worship for the Surya Deva or God Sun and hence it is the considered as the most favorable day in the Hindu calendar. There are 12 Sankrantis in total and Makar Sankranti is one of them. The festival is accompanied by numerous spiritual practices along with nationwide celebration.
It is believed that taking a bath in a holy river like Ganga, Yamuna, Godavari on this day will erase all your past sins and prosperity will welcome you. People also donate clothes and food on this date.
On this day of Makar Sankranti, devotees offer water, red flower, red clothe, wheat, gur (jaggery), akshat, supari and money to the Surya Deva.
You must have seen that kites are flown on this day. Kites flying competitions are also organized in various parts of the country. It is considered as a form of thanksgiving to the god as kites can fly high up in the sky.
People often wear black clothes on this day. It has both scientific and religious benefits. As we all know that black color is an observer of sun rays. During Makar Sankranti, the Sun starts its journey towards the Northern Hemisphere and it is believed that wearing a black color cloth will grab all good energy from the Sun.
People consume freshly harvested food grains on this day which are primarily offered to God and then eaten.
Makar Sankranti is considered as a harvest festival of the country which is celebrated by flying kites, worshiping the God Sun, eating a variety of dishes and lighting bonfires.
One of the renowned dishes associated to Makar Sankrantis is Khichdi. It is a one-pot meal prepared using rice, lentils, salt and turmeric. It has both mythological as well as cultural significances.
Makar Sankranti has its popularity as a harvest festival of the North and celebrated by preparing a variety of food dishes. Khichdi is prepared using harvested rice and lentils which makes it a fresh and special dish.
Khichdi used to be favourite food of the Hindu god Gorakshnath. The deity is served with Khichdi prepared by lentils, rice and haldi on the eve of Makar Sankranti to have blessings for a wealthy harvest season ahead.
सूरज के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। यह परिवर्तन एक बार आता है। सूरज के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का बहुत महत्व है। इसका महत्व इस लिए अधिक है क्योंकि इस समय सूरज दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता है। इस पर्व से शुभ कामों की शुरुआत हो जाती है। उत्तरायण में मृत्यु हो मोक्ष की प्राप्ति की संभावना होती है। पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्य वर्धक होने के कारण पौधों का विनाशक भी माना जाता है। सूरज पूरब दिशा से उदय होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से और 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में छिप जाता है।
मकर संक्रांति के दिन सूरज धनु राशि से निकल कर अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करते हैं; मान्यता है कि सूरज इस दिन अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए खुद उनके घर जाते हैं। इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है। शास्त्रों में बताया जाता है कि उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन रात होती है और उत्तरायण होने पर गर्म मौसम शुरू हो जाता है। इस दिन दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति की जा सकती है। जिस का फल कई जन्मों तक मिलता है।
मकर संक्रांति के त्योहार को कई जगहों पर उत्तरायण भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और सूर्य भगवान की उपासना करने का विशेष महत्व माना जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन किया जाने वाला दान 100 गुना फल देता है। मकर संक्रांति के दिन ही शुद्ध घी-तिल-कंबल- खिचड़ी का दान को बहुत महत्व दिया जाता है। इस दिन शनिदेव के लिए प्रकाश पर दान करना भी शुभ माना जाता है। पंजाब, यूपी, बिहार और तमिलनाडु में यह समय नई फसल काटने का होता है। इसलिए इस दिन को किसान आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन तिल और गुड़ की बनी मिठाईयां दी जाती हैं। मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा भी शामिल है।
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से सभी दुखों का निवारण हो जाता है। पौराणिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान को विशेष महत्व दिया जाता है। इसलिए इस दिन दान पुण्य विशेष महत्व माना जाता है।
मकर संक्रांति को लेकर इतिहास में कई कथाएं है। परंतु पहली कथा श्रीमद् भागवत और देवी पुराण में बताई जाती है। इसके अनुसार शनि महाराज को अपने पिता सूर्य देव से गुस्सा था क्योंकि सूर्य देव ने शनि देव की माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते हुए देख लिया था। इस बात से सूर्य देव ने छाया और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे नाराज होकर शनिदेव और उनकी माता छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।
इतिहास में मकर संक्रांति की दूसरी कथा यह मिलती है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा जी अपने भक्त भागीरथ के पीछे पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गंगा जी धरती पर आए थे। इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और गंगा माता ने इस तर्पण स्वीकार किया था। इसी कारण मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में मेले आयोजन किया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन एक और कथा यह भी मिलती है कि मकर संक्रांति के दिन हुई महाभारत में भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था। प्राण त्यागने के लिए सूरज के मकर संक्रांति में आने का इंतजार किया था। सूर्य ग्रहण के समय शरीर त्यागने वाले आत्माएं सीधा देव लोक मिल जाती है। जिससे व्यक्ति की आत्मा जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाती है।
मकर संक्रांति पर एक कथा यह भी शामिल है कि भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति पर असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने सभी असुरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस दिन बुराई और नकारात्मकता का भी अंत हुआ था। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल नामक उत्तर के रूप में मनाया जाता है।
मकर संक्रांति पर एक कथा यह भी शामिल है कि सूर्य देव कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हो गए थे। इसलिए उन्होंने इस रोग से मुक्ति के लिए तपस्या भी की थी। सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि महाराज के घर कुंभ, जिसे शनि की राशि कहा जाता है। अपने तेज से जला दिया था। इससे शनि देव और उनकी माता छाया को कोई कष्ट भोगने पड़े हैं। यमराज ने अपनी सौतेली माता और अपने भाई सनी को कष्टों में देखकर उनके कल्याण के लिए सूर्य देव को बहुत समझाया था।
कहा जाता है कि यमराज के समझाने पर जब सूर्य देव शनिदेव के घर कुंभ में पहुंचते हैं। वहां सब जला हुआ था। उस समय शनि के पास काले तिल के इलावा कुछ भी नहीं था। इसलिए शनि देव ने काले तिल से ही की पूजा की थी। शनिदेव की पूजा से प्रसन्न होकर शनि देव को अपना आशीर्वाद दिया था। उन्होंने आशीर्वाद में शनि का दूसरा घर मकर राशि में सूर्य देव के आने पर धन धन्य से भर जाएगा। शनिदेव को तिल के कारण ही वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए तिल शनि महाराज को बहुत पसंद है। इसी वजह से मकर संक्रांति के दिन तिल से सूर्य देव और शनि महाराज की पूजा की जाती है। इसे तिल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
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