शिक्षक दिवस कविताएँ, श्लोक और दोहे

इस लेख में, हमने शिक्षक दिवस पर श्रद्धा और आभार व्यक्त करने के लिए पांच बेहतरीन कविताओं श्लोक और दोहे का संक्षेप प्रस्तुत किया है। ये कविताएँ, श्लोक और दोहे हमारे गुरुओं के प्रति हमारी भावनाओं को सुंदरता से व्यक्त करती हैं और उनके संदेशों को सजीव करती हैं।


"शिक्षक दिवस" हमारे शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण दिनों में से एक है जब हम हमारे उन मार्गदर्शकों और गुरुओं का आभार व्यक्त करते हैं, जो हमें ज्ञान और समझ का दान करते हैं। इस लेख में, हमने एक संवादात्मक तरीके से यह महत्वपूर्ण दिन मनाने के लिए पांच अद्वितीय कविताओं, श्लोक और दोहे का संग्रह किया है, जिनमें हमारे गुरुओं के प्रति हमारे आभार और समर्पण की भावना सुंदरता से व्यक्त होती है। इन कविताओं, श्लोक और दोहे के माध्यम से हम अपने शिक्षकों के साथ हमारे जीवन में जो अहम भूमिका निभाते हैं, उनके प्रति आभार और समर्पण दिखाते हैं। चलिए, इन कविताओं और श्लोक की गहराईयों में डूबकर देखते हैं और हमारे गुरुओं के साथ जुड़े रिश्तों को समझते हैं।


शिक्षक दिवस कविताएँ

1. जग में गुरु महान है

गुरु शिक्षा की खान है,

जग में गुरु महान है।

सीख देने वाले भू-तल में,

देवतुल्य इंसान है।।


ज्ञान का अलख जगाते,

अच्छे संस्कार दे जाते हैं।

गुरु का ज्ञान पाकर,

हम खुद को धन्य पाते हैं।।


कुम्हार मिट्टी थाप लगाकर,

देता उसे नई पहचान है।

गुरु शून्यरूपी नादान को,

बनाते उच्च कोटि इंसान है।।


गुरु की महिमा तो,

गाता सारा जहान है।

मिलता ऊँचा शिखर,

गुरु से राष्ट्र निर्माण है।।


गुरु ही साक्षात पारब्रह्म,

ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

इनके पथ प्रदर्शन से,

जीवन में न होता क्लेश।।


महामानव गुरु को,

लगाऊँ तिलक चंदन।

नव सृजनकर्ता गुरु का,

करूँ बारम्बार वंदन।।

करूँ बारम्बार वंदन।।

- महेन्द्र साहू


2. शिक्षा की ज्योति – अध्यापिका 

जो हैं अटके, भूले-भटके,

उनको राह दिखाएँगे।

ज्ञान-विज्ञान संस्कार सिखा,

शिक्षा जोत जलाएँगे।


शिक्षक हैं हम,

शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।

देश-धर्म और जात-पात से,

हम ऊपर उठ जाएँगे।


समता का नवगीत रचेंगे,

ज्ञान का अलख जगाएँगे।

शिक्षक हैं हम,

शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।


छूट गए जो अंधियारे में,

अब अलग नहीं रह पाएँगे।

शिक्षा के अमर उजाले में,

उनको भी हम लाएँगे।


शिक्षक हैं हम,

शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।

खेल-खेल में पढ़ना होगा,

ढंग नए अपनाएँगे।


महक उठेगा सबका जीवन,

सब बच्चे मुस्काएँगे।

शिक्षक हैं हम,

शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।

- लोकेश्वरी कश्यप


3. ज्ञान की बातें 

ज्ञान की बातें जो सिखलाता,

गुरु हमारा वह कहलाता।

ज्ञान दीप की ज्योति देकर,

अंधकार को दूर भगाता।


संस्कार सिखलाए गुरु जी,

बड़ो का मान बतलाए गुरुजी।

अनुशासन भी वो सिखलाते,

त्याग समर्पण वह बतलाते।


सबको ज्ञान बाँटते जाते,

अपना ज्ञान बढ़ाते जाते।

उनकी ताकत होती कलम,

कलम नहीं किसी से कम।


विद्यालय है घर जैसा,

हम सब उनके बच्चे जैसे।

एक साथ रहना बतलाए,

सबसे स्नेह करना सिखलाए।


उनके चरण कमल को मैं,

सत-सत नमन करती जाऊँ।

ज्ञान दीप की ज्योति लेकर,

उनका मैं गौरव बन जाऊँ।

- धारणी सोनवानी


4. गुरु की वाणी 

गुरु आपकी ये अमृत वाणी

हमेशा मुझको याद रहे

जो अच्छा है जो बुरा है


उसकी हम पहचान करें

मार्ग मिले चाहे जैसा भी

उसका हम सम्मान करें


दीप जले या अंगारे हों

पाठ तुम्हारा याद रहे

अच्छाई और बुराई का


जब भी हम चुनाव करें

गुरु आपकी ये अमृत वाणी

हमेशा मुझको याद रहे

- सुजाता मिश्रा

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5. गुरु महिमा

गुरु की महिमा निशि-दिन गाएँ,

हर दम उनको शीश नवाएँ।

जीवन में उजियारा भर लें,

अंधकार को मार भगाएँ।


सत्य मार्ग पर चलना बच्चो,

गुरुदेव हमको सिखलाएँ।

पर्यावरण बिगड़ न पाए,

धरती पर हम वृक्ष लगाएँ।


पानी अमृत है धरती का,

बूँद-बूँद हम रोज बचाएँ।

सिर्फ जिएँ न अपनी खातिर,

काम दूसरों के भी आएँ।


मात, पिता, गुरु, राष्ट्र की सेवा,

यह संकल्प सदा दोहराएँ।

बातें मानें गुरुदेव की,

अपना जीवन सफल बनाएँ।

- घनश्याम मैथिल

शिक्षक दिवस श्लोक

1. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।

 गुरुः साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

इस श्लोक में गुरु की महत्ता को स्वरूप देने का प्रयास किया गया है। यह श्लोक गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर के समान मानता है और उन्हें परम ब्रह्म का प्रतीक मानता है। इसके साथ ही, श्लोक गुरु के प्रति आदर और श्रद्धाभाव को भी व्यक्त करता है।

2. त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।


त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥

यह श्लोक गुरु को माता, पिता, बंधु, सखा, और विद्या के समान मानने का भाव व्यक्त करता है। इसमें शिक्षक को जीवन के सभी पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है और उनके बिना सब कुछ अधूरा होता है। शिक्षक को देवता के समान पूजा जाता है जो ज्ञान और मार्गदर्शन का स्रोत होते हैं।

3. विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।


शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥

यह श्लोक शिक्षक के गुणों को स्तुति और महत्त्व देता है। इसमें शिक्षक के सबसे महत्वपूर्ण गुण, जैसे विद्वत्ता, दक्षता, शील, सङ्कान्ति (स्नेहभाव), और उनकी अनुशासन क्षमता की प्रशंसा की जाती है। शिक्षक के इन गुणों के साथ, छात्र के मानसिक स्थिति के प्रति शिक्षक की प्रसन्नता भी महत्त्वपूर्ण है, जिससे एक सफल शिक्षा प्रक्रिया संभव होती है।

4. दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् ।


गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः शमेन विद्या नगरी जनेन ॥

यह श्लोक गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। इसमें शिष्य और गुरु के संबंध को दुग्ध और धेनु, कुसुम और वल्ली, शील और भार्या, कमल और तोय के समान दर्शाता है। इसका मतलब है कि शिष्य के लिए गुरु ही उसकी ज्ञान की स्रोत होते हैं, और बिना गुरु के, विद्या के नगर में जाने का योग्य रास्ता नहीं होता। इसलिए, गुरु के महत्व को उचित आदर और समर्पण के साथ प्रकट किया गया है।

5. सर्वाभिलाषिणः सर्वभोजिनः सपरिग्रहाः ।


अब्रह्मचारिणो मिथ्योपदेशा गुरवो न तु ॥

यह श्लोक गुरु की महत्वपूर्ण गुणों की प्रशंसा करता है और गुरु के आदर्शों को चित्रित करता है। इसमें यह कहा गया है कि गुरु सर्वाभिलाषिण (सभी इच्छाओं के प्रति निरुपक) होते हैं, सर्वभोजिन (सभी को आहार प्रदान करने वाले) होते हैं, और सपरिग्रह (अल्पाहार में अपने आत्मसमर्पण) होते हैं। गुरु के साथ अब्रह्मचारिण और मिथ्योपदेश (गलत उपदेश) नहीं होते हैं, और गुरु के शिक्षा का मानने का संदेश दिया गया है।

शिक्षक दिवस दोहे - कबीर के दोहे 

1. गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय |


बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय ||

कबीर दास जी के द्वारा इस दोहे में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट रूप से प्रकट किया गया है। वे यह सिद्ध करते हैं कि जब गुरु और भगवान एक साथ होते हैं, तो प्राथमिकता गुरु को ही देनी चाहिए। इसका कारण यह है कि गुरु ही हमें भगवान के प्रति श्रद्धा का मार्ग प्रदर्शन करते हैं और हमारे आत्मिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गुरु के द्वारा ही हम ईश्वर की साक्षात्कार करते हैं और उनकी दिशा में चलते हैं। इसलिए, गुरु का स्थान गोविन्द से भी महत्वपूर्ण है, और हमें उनका समर्पण और आभार करना चाहिए।

2. गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।


वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त ||

इस दोहे में, संत कबीर दास जी गुरु की महिमा को और भी महत्वपूर्ण ढंग से दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि गुरु सभी संतों को आंतरिक रूप से जानते हैं, और वह शिष्य की मानसिक स्थिति को समझकर उसे धार्मिक मार्ग पर दिशा देते हैं। उनके द्वारा किए गए उपदेश का मूल्य सोने और कांस्य की तरह महत्वपूर्ण होता है, और गुरु की मार्गदर्शन से ही महान कार्य किए जा सकते हैं।

3. गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि - गढ़ि काढ़ै खोट।


अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥

इस दोहे में, संत कबीर दास जी गुरु के महत्व को व्यक्त करते हैं। उनके अनुसार, गुरु कुम्हार के समान हैं, जो मूट्ठी में मिट्टी को बनाकर कुंभ बनाते हैं। वे अपने शिष्यों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए तैयार करते हैं, लेकिन इसके लिए वे कठिनाइयों को भी झेलते हैं। गुरु अपने शिष्यों के आंतरिक हाथ में सहारा देते हैं, परन्तु बाहरी दुनिया से आने वाली चोटों का सामना भी करना पड़ता है। इस दोहे के माध्यम से, कबीर दास जी गुरु के महत्वपूर्ण कार्य को बयान करते हैं और शिष्यों को समझाते हैं कि गुरु का साथ ही सफलता की कुंभ की उत्तराधिकारी होता है।

4. गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।


तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥

इस दोहे में, संत कबीर दास जी गुरु के महत्वपूर्ण भूमिका को और भी महत्वपूर्ण ढंग से दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि गुरु दाता की तरह नहीं होते, जो सिर्फ़ चाहने वाले की मांगों को पूरा करता है, बल्कि वे शिष्य के शीष (सिर) की तरह होते हैं, जो शिक्षा और मार्गदर्शन के लिए तैयार होता है। गुरु वह धर्मिक दान देते हैं जो तीन लोकों की संपदा होता है, और उनके द्वारा शिष्यों को उस धर्मिक संपदा की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया जाता है।

5. गुरू बिन ज्ञान न उपजई, गुरू बिन मलई न मोश |


गुरू बिन लाखाई ना सत्य को, गुरू बिन मिटे ना दोष||


इस दोहे में, कबीर दास गुरु के महत्व को बता रहे हैं। वे कह रहे हैं कि गुरु के बिना हमें ज्ञान की प्राप्ति, आत्मा की शुद्धि, सत्य का ज्ञान, और दोषों का सुधारना संभव नहीं होता। गुरु के मार्गदर्शन के बिना हम अपने आध्यात्मिक और मानविक जीवन में सही दिशा में नहीं जा सकते। इसलिए, गुरु का महत्व इस दोहे में महत्वपूर्ण रूप से उजागर किया गया है।

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