प्रिय दोस्तों – आप सभी को नमस्कार!
भाषण समारोह में आज इकट्ठा होने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं, आपका मेजबान -(-------)न आपके लिए स्वामी विवेकानंद के जीवन पर एक भाषण तैयार किया है। आशा है कि आप सभी इस महान व्यक्तित्व के बारे में मेरा भाषण सुनकर उतना आनंद लेंगे जितना मुझे बोलकर आएगा। जो लोग पहले से ही उनके बारे में जानते हैं वे भी मेरे भाषण में अपना योगदान दे सकते हैं और मूल्यवान जानकारी को साझा कर सकते हैं लेकिन जो लोग उनके बारे में ज्यादा नहीं जानते वे उनके जीवन और गतिविधियों के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
देवियों और सज्जनों स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी को 1863 में हुआ था और 1902 में उनकी मृत्यु हो गई थी। वे श्री रामकृष्ण परमहंस के महान अनुयायी थे। उनके जन्म के समय उन्हें नरेंद्रनाथ दत्ता का नाम दिया गया और उन्होंने रामकृष्ण मिशन की नींव रखी। उन्होंने अमेरिका और यूरोप में वेदांत और योग जैसे हिंदू दर्शन की नीवं रखी। उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में हिंदू धर्म के अनुसार विश्व धर्म की स्थिति के अनुसार काम किया। समकालीन भारत में हिंदू धर्म के पुनर्जन्म में उन्हें एक प्रमुख शक्ति के रूप में माना जाता है। उन्हें मुख्यतः "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका" पर दिए उनके प्रेरणादायक भाषण के लिए सबसे अच्छी तरह से याद किया जाता है। इसके बाद ही वे 1893 में शिकागो में विश्व धर्मों की संसद में हिंदू धर्म को पेश करने में सक्षम हो सके।
मुझे यकीन है कि आप उनके बचपन के बारे में भी जानने लिए उत्सुक होंगे। उनका जन्म कलकत्ता के शिमला पाली में हुआ था। प्रारंभ में उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता रखा गया था। विनम्र पृष्ठभूमि उन्हें विरासत में मिली थी जहां उनके पिता कलकत्ता के उच्च न्यायालय में एक वकील थे। उनकी मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था। जब नरेंद्रनाथ बड़े हुए तो उन्होंने अपने पिता और माता दोनों के गुणों का मिश्रण प्राप्त हुआ। अपने पिता से उन्होंने तर्कसंगत सोच और अपनी मां से उन्हें धार्मिक स्वभाव तथा आत्म-नियंत्रण की शक्ति प्राप्त हुई। जब नरेंद्र किशोरअवस्था में पहुंचे तो वे ध्यान लगाने में विशेषज्ञ बन गए। वे समाधि अवस्था में आसानी से प्रवेश कर जाते थे। एक बार उन्होंने सोने के बाद एक प्रकाश देखा। जब उन्होंने ध्यान लगाया तो उन्हें बुद्ध का प्रतिबिंब नज़र आया। अपने शुरुआती दिनों से वे घूमने वाले भिक्षुओं और तपस्या में गहरी रुचि रखते थे। वे खेलना और शरारत करना भी पसंद करते थे।
हालांकि उन्होंने समय-समय पर महान नेतृत्व के गुणों का भी प्रदर्शन किया। उनके बचपन के साथी का नाम कमल रेड्डी था। जब वे किशोरवस्था में पहुँचे तो वे ब्राह्मो समाज के संपर्क में आए और अंततः श्री रामकृष्ण से उनकी मुलाकात हुई। इन्हीं श्री रामकृष्ण की वजह से उनकी सोच में बदलाव आया और उनकी मृत्यु के बाद नरेंद्रनाथ ने अपना घर छोड़ दिया। उन्होंने अपना नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद कर लिया और बोरानगर मठ में अपने अन्य शिष्य मित्रों के साथ रहने लगे। बाद में उन्होंने त्रिवेंद्रम पहुँचने तक भारत भर में अपना दौरा किया और आखिरकार वे शिकागो की धर्म की संसद में पहुँचे। वहां उन्होंने एक भाषण को संबोधित किया और दुनिया भर में हिंदू धर्म के लिए प्रशंसा बटोरी।
वे एक महान व्यक्ति थे जिसने मानव जाति और राष्ट्र के उत्थान के लिए बड़े पैमाने पर काम किया था।
धन्यवाद!
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