सबसे पहले, यहाँ उपस्थित सभी आदरणीय महानुभावों, अध्यापकों, अध्यापिकाओं और मेरे प्यारे सहपाठियों को मेरा नम्र सुप्रभात। इस विशेष अवसर पर, मैं बेटी बचाओ विषय पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। भारतीय समाज में, प्राचीन काल से ही बेटी को एक शाप माना जाता रहा है। यदि हम अपने आप सोचें तो एक सवाल उठता हैं कि कैसे एक बेटी शाप हो सकती है? जवाब बहुत ही साफ और तथ्यों से भरा हुआ है, कि एक लड़की के बिना, एक लड़का इस संसार में कभी जन्म नहीं ले सकता। तो फिर लोग क्यों महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बहुत सी हिंसा करते हैं? तब फिर वे क्यों एक बालिका को जन्म से पहले माँ के गर्भ में ही मार देना चाहते हैं? लोग क्यों लड़कियों का कार्यस्थलों, स्कूलों, सार्वजनिक स्थानों या घरों में बलात्कार और यौन शोषण करते हैं? लड़कियों पर क्यों तेजाब से हमला किया जाता है? और क्यों वह लड़की आदमी की बहुत सी क्रूरताओं का शिकार है?

यह बहुत स्पष्ट है कि, एक लड़की हमेशा समाज के लिए आशीर्वाद रही है और इस संसार में जीवन की निरंतरता का कारण है। हम बहुत से त्योहारों पर विभिन्न देवियों की पूजा करते हैं जबकि, अपने घरों में रह रही महिलाओं के लिए थोड़ी सी भी दया महसूस नहीं करते। वास्तव में, लड़कियाँ समाज का आधार स्तम्भ होती हैं। एक छोटी बच्ची, एक बहुत अच्छी बेटी, बहन, पत्नी, माँ, और भविष्य में और भी अच्छे रिश्तों का आधार बन सकती है। यदि हम उसे जन्म लेने से पहले ही मार देंगे या जन्म लेने के बाद उसकी देखभाल नहीं करेंगे तब हम कैसे भविष्य में एक बेटी, बहन, पत्नी या माँ को प्राप्त कर सकेंगे। क्या हम में से किसी ने कभी सोचा है कि क्या होगा यदि महिला गर्भवती होने, बच्चे पैदा करने या मातृत्व की सभी जिम्मेदारियों को निभाने से इंकार कर दे। क्या आदमी इस तरह की सभी जिम्मेदारियों को अकेला पूरा करने में सक्षम है। यदि नहीं; तो लड़कियाँ क्यों मारी जाती हैं?, क्यों उन्हें एक शाप की तरह समझा जाता है, क्यों वो अपने माता-पिता या समाज पर बोझ हैं? लड़कियों के बारे में बहुत से आश्चर्यजनक सत्य और तथ्य जानने के बाद भी लोगों की आँखें क्यों नहीं खुल रही हैं।
आजकल, महिलाएं घर के बाहर मैदानों में आदमी से कंधे से कंधे मिलाकर घर की सभी जिम्मेदारियों के साथ काम कर रही हैं। यह हमारे लिए बहुत शर्मनाक है कि आज भी लड़कियाँ बहुत सी हिंसा का शिकार हैं, जबकि तब उन्होंने अपने आपको इस आधुनिक युग में जीने के लिए ढाल लिया है। हमें समाज में पुरुष प्रधान प्रकृति को हटाते हुये कन्या बचाओ अभियान में सक्रियता से भाग लेना चाहिये। भारत में, पुरुष स्वंय को शासन करने वाला और महिलाओं से बेहतर मानते हैं, जो लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को जन्म देता है। कन्या को बचाने के लिए माता-पिता की सोच बदलना ही पहली जरुरत है। उन्हें अपनी बेटियों के पोषण, शिक्षा, जीवन शैली, आदि की उपेक्षा रोकने की जरूरत है। उन्हें अपने बच्चों को एक समान मानना चाहिये चाहे वो बेटी हो या बेटा। यह माता-पिता की लड़की के लिए सकारात्मक सोच ही है जो भारत में पूरे समाज को बदल सकती है। उन्हें उन अपराधी डॉक्टरों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिये जो कुछ पैसे प्राप्त करने के लालच में बेटी को मां के गर्भ में जन्म लेने से पहले ही मार देते हैं।
सभी नियमों और कानूनों को उन लोगों के (चाहे वे माता-पिता, डॉक्टरों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, आदि हों) खिलाफ सख्त और सक्रिय होना चाहिये जो लड़कियों के खिलाफ अपराध में शामिल हैं। केवल तभी, हम भारत में अच्छे भविष्य के बारे में सोच और उम्मीद कर सकते हैं। महिलाओं को भी मजबूत होना पड़ेगा और अपनी आवाज उठानी पड़ेगी। उन्हें महान भारतीय महिला नेताओं जैसे; सरोजनी नायड़ू, इंदिरा गाँधी, कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स आदि से सीख लेनी होगी। इस संसार में महिलाओं के बिना सब-कुछ अधूरा है जैसे; आदमी, घर और स्वंय एक संसार। इसलिए मेरा/मेरी आप सभी से नम्र निवेदन है कि कृपया आप सभी स्वंय को कन्या बचाओ अभियान में शामिल करें।
भारत के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने कन्या बचाओ पर अपने भाषण में कहा था कि, “भारत का पीएम आपसे बेटियों के लिए भीख मांग रहा है”। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं” (अर्थात् छोटी बालिकाओं के जीवन को बचाकर उन्हें पढ़ाना) अभियान शुरु किया। यह अभियान उनके द्वारा समाज में कन्या भ्रूण हत्या के साथ ही महिला सशक्तिकरण के बारे में शिक्षा के माध्यम से जागरुकता फैलाने के लिए शुरु किया गया। ये कुछ वो तथ्य हैं, जो हमारे प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कहे थे:
“देश का प्रधानमंत्री बेटियों का जीवन बचाने के लिए आपसे भीख मांग रहा है”।
“कुरुक्षेत्र (हरियाणा) के पास में, प्रिंस नाम का लड़का एक कुएं में गिर गया, और पूरे राष्ट्र ने उसके बचाव कार्य को टीवी पर देखा। एक प्रिंस के लिए पूरे देश ने एकजुट होकर प्रार्थना की, लेकिन बहुत सी लड़कियों के मारे जाने पर हम कोई प्रतिक्रिया नहीं करते।”
“हम 21वीं सदी के नागरिक कहलाने योग्य नहीं है। यह इसलिए क्योंकि हम 18वीं शताब्दी के हैं – उस समय, और लड़की के जन्म के तुरन्त बाद ही उसे मार दिया जाता था। हम आज उससे भी बदतर हैं, हम तो लड़की को जन्म तक नहीं लेने देते और उसे जन्म से पहले ही मार देते हैं।”
“लड़कियां लड़कों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं। यदि हमें सबूत चाहिये तो परीक्षा परिणामों को देखो।”
“लोगों को पढ़ी-लिखी बहू चाहिये लेकिन एक बार ये तो सोचो कि बिना बेटियों को पढ़ाये, यह कैसे संभव है?”
धन्यवाद।
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